शिवलिंग बनाती हैं मुस्लिम महिलाएं, खुद को बताती हैं 'भोले के भक्त'
आलमआरा ने पारे से शिवलिंग बनाना कब और कैसे शुरू किया, इसके पीछे भी पूरी कहानी है. आलमआरा के मुताबिक उनके पति ऑटो चलाते थे. फिर उन्होंने ऑटो चलाना छोड़ दिया और ऐसा काम खोजने की तलाश में लग गए जिसे और कोई नहीं करता हो. पति की इसी जिद में करीब 7 साल ऐसे ही गुजर गए, इस दौरान परिवार की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई. आलमआरा ने बताया, 'एक दिन एक बाबा हमारे घर आए और मेरे पति से कहा कि अपनी पत्नी के हाथ की बनी चाय मुझे पिलाओ. मुझे हैरानी भी हुई कि वो क्या मेरे हाथ की बनी चाय पिएंगे. मैने उन्हें चाय पिलाई तो वो बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने मेरे पति से कहा कि तेरी पत्नी लक्ष्मी है, उसकी वजह से ही तुझे एक ऐसा हुनर सिखाते हैं जिससे तेरी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी.'
आलमआरा के मुताबिक उस बाबा ने तरल पारे को चम्मच पर लेकर मोम बत्ती की आग पर ठोस गोली बना कर दिखाई. उसी के बाद आलमआरा के पति ने पारे के शिवलिंग बना कर बेचना शुरू कर दिया. परिवार की गाड़ी पटरी पर आने लगी तभी आलमआरा के पति का निधन हो गया. चार बेटियों की मां आलमआरा ने तब खुद इस काम को संभाला. इस काम में उनकी बेटियों और देवर मैकश ने भी पूरा हाथ बंटाया. आलमआरा तीन बेटियों की शादी कर चुकी हैं.
आलमआरा के मुताबिक वो 16 ग्राम से लेकर ढाई क्विंटल तक पारे का शिवलिंग बना चुकी हैं. इन शिवलिंगों की मांग सिर्फ वाराणसी तक ही नहीं बल्कि देश-विदेश में दूर-दूर तक है. सावन के दिनों में इन शिवलिंगों की मांग काफी बढ़ जाती है. वाराइतने वर्षों से पारे को तरल से ठोस बनाते आने से भी आलमआरा या उनके परिवार के किसी और सदस्य के स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा. इसे वो महादेव का ही आशीर्वाद मानती हैं.