क्या इन लोगो को गायत्री मंत्र का जाप नही करना चाहिए ?

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भारत देश एवं अपना हिंदुत्व इतना बड़ा है कि इसमें यदि कोई कुरीति या कोई अपवाद आ जाये तो लोग यूँ हीं मान कर आगे बढ़ जाते है !

क्या गायत्री मंत्र का जाप चमार,दुसादो को नही करनी चाहिए

वैसे तो ऐसा कहीं नही लिखा कि गायत्री मंत्र का जाप चमारो दुसाद या कोई अन्य जाती को करना चाहिए या नही 
परन्तु यदि आपका उपनयन संस्कार नही



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हुआ है तो आपको गायत्री मंत्र का जाप नही करनी
चाहिए , तो क्या जिनका जनेऊ संस्कार नही हुआ 
उनके गायत्री मंत्र के जाप करने से कोई नुकसान होता है
नही कोई नुकसान नही ,परन्तु जिनका जनेऊ संस्कार 
नही हुआ उनके द्वारा गायत्री मंत्र का जाप करने पर
जो गायत्री मंत्र का फल होता है वो उन्हें प्राप्त नही होता
यानी गायत्रीमंत्र फलित नही होती उनके लिए जिनके 
उपनयन संस्कार नही हुआ

यज्ञोपवीत (जनेऊ) का संदेश और बदलने का महत्व

आपको ये याद दिलाना कि आपके कन्धों पर तीन जिम्मेदारियां या ऋण हैं – माता-पिता के प्रति ज़िम्मेदारी, समाज के प्रति जिम्मेदारी और ज्ञान के प्रति जिम्मेदारी|ये हमारी तीन जिम्मेदारी या ऋण हैं| हम अपने माता-पिता के प्रति ऋणी हैं, हम समाज के प्रति ऋणी हैं, और हम गुरु के प्रति ऋणी हैं; यानि ज्ञान के प्रति| तो ये तीन प्रकार के ऋण हैं, और यज्ञोपवीत हमें इन तीन जिम्मेदारियों की याद दिलाता है|
जब हम कहते हैं ‘ऋण’ – तो हमें लगता है कि ये कोई कर्जा है जो हमें वापिस करना है| लेकिन हमें इसे एक जिम्मेदारी के रूप में समझना चाहिये| तो इस सन्दर्भ में ऋण का क्या अर्थ है? जिम्मेदारी! यह है अपनी जिम्मेदारियों को पुनः याद करना, पिछली पीढ़ी के प्रति, आने वाली पीढ़ी के लिए और वर्तमान पीढ़ी के लिए| और इसी लिए, आप धागे को तीन बार लपेटते हैं।
यही इसका महत्व है – मुझे अपना शरीर शुद्ध रखना है,
अपना मन शुद्ध रखना है और अपनी वाणी शुद्ध रखनी है; शरीर, मन और वाणी में पवित्रता| और जब आपके चारों ओर एक धागा लटका रहता है, तो आपको हर दिन ये याद आता है – “ओह, मेरी ये तीन जिम्मेदारी हैं”|
पुराने दिनों में महिलाओं को भी ये धागा पहनना होता था| ये केवल एक जाति या किसी और जाति तक ही सीमित नहीं था| इसे हर एक कोई पहनता था – फिर चाहे वो ब्राह्मण हो, वैश्य, क्षत्रिय या शुद्र; लेकिन बाद में यह सिर्फ कुछ लोगों तक ही सीमित रह गया।
तो इस दिन, जब ये पवित्र धागा (जनेऊ) बदला जाता है, तो इसे
एक संकल्प के साथ किया जाता है, कि “मुझे शक्ति प्रदान हो, कि मैं जो भी कर्म करूँ वे कुशल और श्रुत हों”| कर्म करने के लिए भी किसी को योग्यता चाहिये| और जब शरीर शुद्ध हो, वाणी शुद्ध हो और चेतना जागृत हो, तभी काम पूरा होता है|
ऐसा कहा गया है, कि किसी को काम करने के लिए, चाहे वे आध्यात्मिक हो या फिर सांसारिक काम, उन्हें कुशलता और योग्यता जरूरी है और इस कुशलता और योग्यता को पाने के लिए, आपको जिम्मेदार होना पड़ेगा| केवल एक ज़िम्मेदार व्यक्ति ही काम
करने के लायक है| कितना सुन्दर सन्देश दिया गया है|और यज्ञोपवीत संस्कार – माने ये सीखना कि जिम्मेदारी कैसे ली जाती है|
जनेऊ (पवित्र धागा) को सिर्फ ऐसे ही नहीं बदल देना चाहिये| जीवन में जिम्मेदारियां होती हैं| तो इसे सजगता और संकल्प के साथ बदला जाता है कि “मैं जो भी करूँ, उसे जिम्मेदारी के साथ करूँ”

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