मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है उम्र का बेहतरीन हिस्सा है-मेरा बचपन

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काश मैं लौट जाऊं…

बचपन की उन हसीं वादियों में ऐ जिंदगी
जब न तो कोई जरूरत थी और न ही कोई जरूरी था!

जिंदगी फिर कभी न मुस्कुराई बचपन की तरह
मैंने मिट्टी भी जमा की खिलौने भी लेकर देखे

वक्त से पहले ही वो हमसे रूठ गयी है,
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ छूट गयी है।
सम्मान पैसा देख कर दिया जाता हैं।

कुछ नहीं था हमारे पास
फिर भी राजाओं को तरह जिया करते थे।
सच में उस बचपन वाली जिन्दगी में
बहुत मज़े किया करते थे।

कितने खुबसूरत हुआ करते थे
बचपन के वो दिन,
सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से,
दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी।

शौक जिन्दगी के अब जरुरतो में ढल गये,
शायद बचपन से निकल हम बड़े हो गये।

अजीब सौदागर है ये वक़्त भी
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया

ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर।

इतनी चाहत तो लाखो
रुपए पाने की भी नहीं होती,
जितनी बचपन की तस्वीर
देखकर बचपन में जाने की होती है।

हँसते खेलते गुज़र जाये वैसी शाम नही आती,
होंठो पे अब बचपन वाली मुस्कान नही आती।

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