गंगा नदी के तट पर एक धर्मशाला थी। वहां एक गुरु जी रहा करते थे। वह दिनभर तप और ध्यान में लीन होकर अपना जीवन यापन करते थे।
एक दिन जब गुरु जी नदी में नहा रहे थे, उसी समय एक बाज अपने पंजे में एक चुहिया लेकर उड़ा जा रहा था। जब बाज गुरु जी के ऊपर से निकला तो, चुहिया अचानक बाज के पंजे से फिसलकर गुरु जी की अंजुली में आकर गिर गई।
गुरु जी ने सोचा कि अगर उन्होंने चुहिया को ऐसे ही छोड़ दिया, तो बाज उसे खा जाएगा। इसलिए, उन्होंने चुहिया को अकेला नहीं छोड़ा और उसे पास के बरगद के पेड़ के नीचे रख दिया और खुद को शुद्ध करने के लिए फिर से नहाने के लिए नदी में चले गए।
नहाने के बाद गुरु जी ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके चुहिया को एक छोटी लड़की में बदल दिया और अपने साथ आश्रम ले गए। गुरु जी ने आश्रम पहुंचकर सारी बात अपनी पत्नी को बताई और कहा कि हमारी कोई संतान नहीं है, इसलिए इसे ईश्वर का वरदान समझ कर स्वीकार करो और इसका अच्छे से लालन-पालन करो।
फिर उस लड़की ने स्वयं गुरु जी की देखरेख में धर्मशाला में पढ़ना-लिखना शुरू कर दिया। लड़की पढ़ने में बहुत होशियार थी। यह देखकर गुरु जी और उनकी पत्नी को अपनी बेट पर बहुत गर्व होता था।
एक दिन गुरु जी को उनकी पत्नी ने बताया कि उनकी लड़की विवाह योग्य हो गई है। तब गुरु जी ने कहा कि यह विशेष बच्ची एक विशेष पति की हकदार है।
अगली सुबह अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए गुरु जी ने सूर्य देव की प्रार्थना की और पूछा “हे सूर्यदेव, क्या आप मेरी बेटी के साथ विवाह करेंगे?”
यह सुनकर लड़की बाेली “पिताजी, सूर्य देव पूरी दुनिया को रोशन करते हैं, लेकिन वह असहनीय रूप से गर्म और उग्र स्वभाव के हैं। मैं उनसे शादी नहीं कर सकती। कृपया मेरे लिए एक बेहतर पति की तलाश करें।”
गुरु जी ने आश्चर्य से पूछा, “सूर्य देव से बेहतर कौन हो सकता है?”
इस पर सूर्य देव ने सलाह दी, “आप बादलों के राजा से बात कर सकते हैं। वह मुझसे बेहतर हैं, क्योंकि वह मुझे और मेरे प्रकाश को ढक सकते हैं।”
इसके बाद, गुरु जी ने अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए, बादलों के राजा को बुलाया और कहा, “कृपया मेरी बेटी को स्वीकार करें। मैं चाहता हूं कि अगर बेटी की स्वीकृति हो, तो आप उससे शादी करें।”
इस पर बेटी ने कहा, “पिताजी, बादलों का राजा काला, गीला और बहुत ठंडा होता है। मैं उससे शादी नहीं करना चाहती। कृपया मेरे लिए एक बेहतर पति की तलाश करें।”
गुरु जी ने फिर से आश्चर्य में पूछा, “भला बादलों के राजा से भी बेहतर कौन हो सकता है?”
बादलों के राजा ने सलाह दी, “गुरुजी, आप हवाओं के भगवान वायुदेव से बात करें। वह मुझसे बेहतर हैं, क्योंकि वह मुझे कहीं भी उड़ा कर ले जा सकते हैं।”
इसके बाद, गुरु जी ने फिर से अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए, वायु देव को बुलाया और कहा, “कृपया मेरी बेटी के साथ विवाह स्वीकार करें। अगर वह आपको चुनती है तो।”
लेकिन बेटी ने वायुदेव से भी विवाह करने से इनकार कर दिया और कहा, “पिता जी, वायु देव बहुत तेज हैं। वह अपनी दिशा बदलते रहते हैं। मैं उनसे शादी नहीं कर सकती। कृपया मेरे लिए एक बेहतर पति की तलाश करें।”
गुरु जी फिर सोचने लगे, “वायुदेव से भी बेहतर कौन हो सकता है?”
इस पर वायु देव ने सलाह दी, “आप पहाड़ों के राजा से इस विषय में बात कर सकते हैं। वह मुझसे बेहतर है, क्योंकि वह मुझे बहने से रोक सकते हैं।”
इस के बाद गुरु जी ने अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए, पहाड़ों के राजा को बुलाया और कहा, “कृपया मेरी बेटी का हाथ स्वीकार करें। मैं चाहता हूं कि अगर वह आपको पसंद करती है, तो आप उससे शादी करें।”
फिर बेटी ने कहा, “पिता, पहाड़ों के राज बहुत कठोर हैं। वह अचल हैं। मैं उससे शादी नहीं करना चाहती। कृपया मेरे लिए एक बेहतर पति की तलाश करें।”
गुरु जी ने सोचा, “पहाड़ों के राज से भी बेहतर कौन हो सकता है?”
पहाड़ों के राजा ने सलाह दी, “गुरुजी, आप चूहे के राजा से बात करके देखिए। वह मुझसे बेहतर है, क्योंकि वह मुझमें छेद कर सकता है।”
आखिर में गुरु जी ने अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए चूहे के राजा को बुलाया और कहा, “कृपया मेरी बेटी का हाथ स्वीकार करें। मैं चाहता हूं कि आप उससे शादी करें, अगर वह आपसे शादी करना चाहे।”
जब बेटी चूहे के राजा से मिली, तो वह खुश होकर शादी के लिए राजी हो गई।
गुरु ने अपनी बेटी को एक सुंदर चुहिया के रूप में वापस बदल दिया। इस प्रकार गुरु जी की बेटी चुहिया का स्वयंवर सम्पन्न हुआ।
कहानी से सीख: जो जन्म से जैसा होता है, उसका स्वाभाव कभी नहीं बदल सकता।