सीएए (CAA) और एनआरसी (NRC) को लेकर पूरे देश में धरना-प्रदर्शन हो रहे हैं, वहीं अब्दुल गफ्फार सोलंकी ने सवाल उठाया है कि वह क्या करें? उनके बाप, दादा, परदादा सब हिंदू थे और वह मुसलमान हैं.
नई दिल्ली. सीएए (CAA) और एनआरसी (NRC) को लेकर पूरे देश में धरना-प्रदर्शन हो रहे हैं. सीएए और एनआरसी को लेकर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं. ऐसे में सरकार और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल पड़ा है. मगर इस सबके बीच एक ऐसा मामला सामने आया है जो आपको न सिर्फ हैरान ही करेगा, बल्कि सोचने पर मजबूर भी कर देगा.
दरअसल, दिल्ली (Delhi) के जामिया (Jamia) नगर इलाके के जोगाबाई में रहने वाले एक शख्स अब्दुल गफ्फार सोलंकी (Abdul Gaffar Solanki) का सवाल है कि उनका पूरा खानदान अलीगढ़ जिले के कसीरू गांव से ताल्लुक रखता है. उनके पिता और दादा के अलावा परदादा सबके सब गैर मुस्लिम यानी हिंदू थे, लेकिन अब सीएए और एनआरसी को लेकर उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि उनके साथ क्या होगा. उनका और उनके परिवार वालों का क्या होगा. क्या उनको मुस्लिम तबके में रखकर कानून के तहत अपने जन्म का प्रमाणपत्र देना होगा या फिर हिंदू होने के तहत उनको छूट मिलेगी और उनकी नागरिकता पर कोई खतरा नहीं होगा.
गफ्फार कहते हैं कि अगर 50 साल पुराना रिकॉर्ड दिखाया जाए तो मेरे बाप-दादा का नाम हिंदू है और मैं एक मुसलमान हूं. मेरे परिवार ही नहीं, बल्कि मेरे ताऊ, चचेरे भाई, बहन से लेकर करीब डेढ़ सौ लोगों के सामने एक बड़ा सवाल है कि आखिर हमारा क्या होगा.
गफ्फार बताते हैं कि उनके और उनके गैर मुस्लिम खानदान वालों से अच्छे संबंध रहे हैं. बचपन में तो वह पलवल आदि में शादियों में खूब जाया करते थे. अपने पिता भगवती प्रसाद सोलंकी के साथ 07 साल पहले वह अलीगढ़ अपने गांव गए थे, लेकिन अब हालात थोड़े बदल गए और अब संबंध उतने करीब के नहीं रहे.
अब्दुल गफ्फार सोलंकी का कहना हैं, "मेरे दादा का नाम सखा सिंह सोलंकी और दादा का नाम तेज सिंह सोलंकी था और पिता का नाम भगवती प्रसाद सोलंकी है. हमारा पूरा खानदान 1947 के बाद मुसलमान हो गया और हमने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया, लेकिन अब मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं और हमारा परिवार दोनों किस ओर जाएं."
गफ्फार कहते हैं कि अगर 50 साल पुराना रिकॉर्ड दिखाया जाए तो मेरे बाप-दादा का नाम हिंदू है और मैं एक मुसलमान हूं. मेरे परिवार ही नहीं, बल्कि मेरे ताऊ, चचेरे भाई, बहन से लेकर करीब डेढ़ सौ लोगों के सामने एक बड़ा सवाल है कि आखिर हमारा क्या होगा.
गफ्फार सवाल करते हैं, 'मैं सरकार और गृहमंत्री अमित शाह से यह जानना चाहता हूं कि मैं अपने जैसे भाइयों को किस वर्ग में रखूंगा. मेरे परिवार और खानदान के लोगों की भी यही समस्या है, वे क्या करेंगे, क्योंकि पुराने कागजों में हम सब हिंदू हैं. अब मैं मुसलमान हूं तो क्या करूं?'
गफ्फार बताते हैं कि उनके और उनके गैर मुस्लिम खानदान वालों से अच्छे संबंध रहे हैं. बचपन में तो वह पलवल आदि में शादियों में खूब जाया करते थे. अपने पिता भगवती प्रसाद सोलंकी के साथ 07 साल पहले वह अलीगढ़ अपने गांव गए थे, लेकिन अब हालात थोड़े बदल गए और अब संबंध उतने करीब के नहीं रहे.