दुनिया के सबसे अमीर आदमी जेफ बेजोस के फोन को हैक किए जाने की खबर सुनी. रिपोर्ट के मुताबिक उनके फोन पर पेगासस स्पाईवेयर से अटैक किया गया था. कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर कोई फोन कैसे हैक हो जाता है. तो हम आपको बताते हैं कि फोन को हैक करने के लिए किस तरह का प्रोसेस हैकर्स अपनाते हैं और इसको ध्यान में रखकर आप सावधान भी रह सकते हैं-
अटैकर्स करते हैं वॉट्सऐप का यूज़-
साल 2019 में वीडियो मैसेज भेजकर या कॉल करके फोन को टारगेट करना काफी कॉमन था. लेकिन अब हैकर्स वॉट्सऐप का यूज़ करके फोन को हैक करने की कोशिश करते हैं. पेगासस स्पाईवेयर का प्रयोग भी वॉट्सऐप के जरिए ही किया जा रहा है. इस वायरस ने अभी तक पूरी दुनिया में 1400 लोगों को अपना निशाना बनाया है. इसे वॉट्सऐप के जरिए एक्जीक्यूट किया जाता है. इसके जरिए हैकर्स फोन के कैमरा, माइक्रोफोन, स्टोरेज और लोकेशन का रियल टाइम ऐक्सेस पा लेते हैं. नवंबर में भारत सरकार ने वॉट्सऐप यूज़र्स को इसी तरह के दूसरे अटैक को लेकर आगाह किया था.
रखें अपने ऐप्स पर नज़र-
स्मार्टफोन में आने वाले वायरस आमतौर पर थर्ड-पार्टी स्टोर से ओरिजिनेट होते हैं लेकिन कई बार ये प्ले स्टोर पर भी मिलते हैं. इनमें से बहुत से ऐप्स ऐसी तकनीक का प्रयोग करते हैं जिससे मलीशियस फाइल्स को एन्क्रिप्ट किया जा सके ताकि इनको डिटेक्ट न किया जा सके. एक बार इन्स्टॉल होने के बाद ये टारगेट को ऐक्सेसबिलिटी राइट्स के लिए पूछते हैं जिससे ये 'बैक डोर' को डिवाइस में प्लान्ट कर सकें और रिमोट सर्वर पर डेटा भेजते रहें. सारे मैलवेयर पर्सनल डेटा की चोरी नहीं करते हैं बल्कि फोन को क्रिप्टोजैकिंग के लिए हैक करते हैं.
अटैकर्स ओटीए अपडेट से करते हैं टारगेट-इसके लिए अटैकर्स पहले फेक ओटीए (ओवर द एयर) मैसेज भेजते हैं और टारगेट को नए नेटवर्क कॉन्फिगुरेशन सेटिंग को कॉन्फिगर करने का ऑफर देते हैं. एक बार जब इन सेटिंग्स को डाउनलोड कर लिया जाता है तो अटैकर्स सारे इंटरनेट ट्रैफिक को प्रॉक्सी सर्वर द्वारा कंट्रोल किए जाने वाले रूट द्वारा ऐक्सेस कर सकते हैं.
मैलवेयर किन रूट्स का प्रयोग करते हैं-
सारे मैलवेयर लिंक, मैसेज या ऐप के जरिए यूज़र्स को टारगेट नहीं करते हैं. कुछ यूनीक मैलवेयर जैसे ब्लू बॉर्न वगैरह ब्लू टूथ का प्रयोग करके एयर वेव्स के जरिए भी फैल सकते हैं. इससे बचने के लिए पब्लिक वाईफाई से फोन को कनेक्ट न करें इससे खतरा हो सकता है. इस नेटवर्क के जरिए मैन इन द मिडिल अटैक करते हैं. मतलब जो इन्फॉर्मेशन स्मार्टफोन और नेटवर्क के बीच भेजा जाता है उसे अटैकर्स पढ़ सकते हैं. यहां तक कि फोन को किसी पब्लिक यूएसबी पोर्ट का प्रयोग करके चार्ज करने से भी खतरा हो सकता है.
किस डिवाइस को है कम खतरा- फोन को हैक करने के बहुत से तरीके हैं. अटैकर्स सिर्फ एंड्रॉयड फोन तक ही सीमित नहीं हैं इसलिए इनकी संख्या काफी ज्यादा है. एंड्रॉयड डिवाइस ओपन सोर्स कोड पर चलती है जिससे फोन के साथ ज्यादा छेड़छाड़ किया जा सकता है. फोन निर्माताओं के द्वारा जो कस्टमाइजेशन किया जाता है उससे भी सिक्युरिटी को नुकसान पहुंचता है. जबकि ऐपल डेवेलपर्स के साथ सोर्स कोड को रिलीज़ नहीं करता है जिससे आईफोन में अपने कोड को मॉडीफाई करना आसान नहीं होता.