गुरु गोरखनाथ के शिष्य व नाथ परंपरा के वाहक योगी अलग-अलग समय में समाज में सुर्खियां बटोरते रहे हैं। पंजाब में पैदा रांझा भी हीर के विरह में योगी बन गए थे। दीक्षा लेने के बाद गुरु से कहा था कि मैं संसार में एक स्त्री से प्रेम करता हूं, मैंने उसकी प्राप्ति के लिए योग मार्ग अपनाया है। यदि इस बात का पता होता कि योगी के लिए प्रेम करना पाप होता है तो यहां कभी नहीं आता। पंजाब के लोक मानस और नाथ संप्रदाय के लोक कहानियों में हीर रांझा के किस्से दर्ज हैं।
यूं है कहानी
16वीं सदी में सुल्तान बहलोल लोदी के शासन काल में तख्त हजारा में मुइजुद्दीन चौधरी नाम का एक अमीर जाट था। उसके बेटे का नाम रांझा था। उसे बांसुरी बजाने का शौक था। पिता के मरने के बाद भाभियों के कारण उसने घर छोड़ दिया। उसकी मुलाकात हीर से हुई दोनों प्रेम करने लगे। हीर के पिता ने उसकी दूसरी जगह शादी कर दी। रांझा ने अपनी प्रियतमा को पाने के लिए योग साधना का संकल्प लिया।
उसे पता चला झेलम के टीला पर महायोगी गोरखनाथ तप कर रहे हैं। रांझा ने वहां पहुंचकर बांसुरी की रागिनी छेड़ दी, जिसे सुन महायोगी की समाधि टूट गई। उसने कहा कि मेरी हीर को मुझसे अलग कर दिया गया, उसके लिए योगी बनना चाहता हूं।
गुरु गोरखनाथ बोले, योग के विकट मार्ग पर चलना बहुत कठिन है। शरीर पर राख और मिट्टी मलकर उसे मिट्टी और राख में ही मिलाना योग का पहला अध्याय है। योग का आशय जीते जी मर जाना है। जीवन भर भिक्षा मांगना और स्त्री के कटाक्ष से बचना होगा। सभी स्त्रियों को मां-बहन समझाना होगा।
तब रांझा ने गोरखनाथ के चरण पकड़ लिए। कहा कि अब वापस मत भेजिए। उसका प्रेम देख बाबा ने उसे दीक्षा दे दी। कहा कि आने वाले कल की चिंता छोड़ दो। जिसके दरवाजे पर जाओ उसे आशीर्वाद दो। बाबा से हीर से मिलने का रास्ता पूछ कर रांझा योगी उसकी ससुराल पहुंच गया। वहां प्रियतमा मृत मिली। यह देख योगी रांझे ने भी शरीर त्याग दिया।